...

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ज़िन्दगी की हकीकत
काश मैं भी लड़का होती, ये ख्याल दिल से जाता ही नहीं,
रातों को बेफिक्री से उड़ती, मेरी नींद कभी छिनती नहीं,
सोने की आज़ादी, दोस्तों की टोली में हंसी,
काश मेरे भी कदम चलते बेखौफ, हंसी-ठिठोली में डूबे रहते।

मेरे लिए पन्ने पलटे जाते, लड़के के लिए रास्ते खुल जाते,
कहने को सशक्तिकरण है, पर हकीकत में सब बंदीखाने।
काश मैं भी लड़का होती, क्या मेरे सपने बदलते?
या ये समाज, ये सोच, मेरे पंखों को ऐसे ही कटते?

36 घंटे का दर्द, वो कहर जो मेरे जिस्म पर छूट गया,
काश मैं लड़का होती, ये सवाल दिल में टुट गया।
कहते...