"काँटों से मुलाक़ात"
दबी रहीं ख़्वाहिशें,
तन्हा गुज़री रात..!
ग़ुलाब की चाहत में हुई,
काँटों से मुलाक़ात..!
चले थे दिल बहलाने,
ख़ुद को उसका कहलाने..!
ज़ख़्मों की ज़िद्द रही,
सीने पे मचाया ख़ूब उतपात..!
जीत कर भी...
तन्हा गुज़री रात..!
ग़ुलाब की चाहत में हुई,
काँटों से मुलाक़ात..!
चले थे दिल बहलाने,
ख़ुद को उसका कहलाने..!
ज़ख़्मों की ज़िद्द रही,
सीने पे मचाया ख़ूब उतपात..!
जीत कर भी...