...

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स्वीकार


अगर -मगर कुछ तो कहा होगा?
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहा जुड़ते है रिश्ते
कुछ तो उसके मन में भी रहा होगा।

स्वीकार करना इतना आसान तो नहीं?
हर किसी पर बिकता ईमान तो नहीं?
कोई जज्बाती मजबूरी उसकी भी होगी
वर्ना मुहब्बत हर किसी का इंतकाम् तो नहीं?

मुहब्बत- ए- जंग में वो भी हारा होगा।
कुछ बातों में मन तो उसने भी मारा होगा।
ऐसे ही कहाँ बुलंद रहते हैं होंसले,
किसी दिल का तो उसको भी सहारा होगा ।

दिल से दिल मिलना भी एक इत्तफाक है।
ये रिश्ता भी कहीं ना कहीं पाक है ।
कैसे बयाँ भला जज़्बात ना किये जाएं,
यार बिना ज़िंदगी जब खाक है ।

आपको चाहा और आप ज़िंदगी बन गए ।
सच कहूँ तो मेरी बंदगी बन गए ।
लो दिल ने किया कबूल आपको,
आप मेरी अब हर खुशी बन गए ।

तेरी खुशी पर ज़िंदगी वार देंगे ।
कसम से तुझे इतना प्यार देंगे ।
यूँ तो जीता है हमने भी ज़माना,
कसम से तेरे सामने हम हार देंगे ।

प्यार की हार में भी अलग मज़ा है ।
हम जी लेंगे जैसी तेरी रज़ा है ।
कुबूल हस कर यारो करते हैं सब,
प्यार की सज़ा तो ऐसी सज़ा है ।

इस सज़ा से ना हम इनकार करते हैं ।
जानते हैं आप भी हमसे प्यार करते हैं ।
दिल-ए-हाल भले तुम कहो ना कहो,
लो हम तुम्हे स्वीकार करते हैं ।