...

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क्या है ,मजदूर !
मेरे पास में ही एक घर तोड़ने का काम चल रहा है।
एक नया घर बनाने के लिए।
मैं जो देख रहा हूं वह यह है कि मजदूरों में केवल पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं और उनके बच्चे भी हैं।
मैंने बच्चे क्यों कहा?
माता-पिता अपने बच्चों को घर पर नहीं छोड़ सकते।
यही माता-पिता की चिंता है।इसलिए वे उन्हें लाते हैं, ।


लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं, जो देखेंगे वही खेलेंगे और सीखेंगे।
तो एक प्रकार से वो बच्चे भी आगे जाकर मजदूर होंगे।
वहीं अगर ,वे बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहने के बजाय घर पर या स्कूल में ही रहे,तो यह अच्छा है।
वे वही सीखेगे, जो वह स्कूल में देखेगा।
खैर! फिर भी, मैं मानता हूं, वे बच्चे वहां खेल रहे हैं और अपने माता-पिता के साथ खुश हैं।
इससे बड़ी बात क्या हो सकती है? वो बच्चे आपस में खेल रहे हैं।
कभी-कभी उनके माता-पिता भी उनके साथ शामिल हो रहे हैं।


मुझे देखकर आश्चर्य हो रहा है।
इतनी खुशी मेरे आंखों को रोंगटी है ,जैसे सूरज का प्रकाश ।
यह मजदूर अपने परिवार वालों के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं ।
इतनी ठंड है और ये छेनी हथौड़ी लिए घर को तोड़े जा रहे हैं।
उस ठंड में जो जिम्मेदार है,छोटी सी चोट को बड़ी करने के लिए।


मेरा मानना है कि अगर आप परिवार के साथ है तब आप सबसे ज्यादा खुश है।
वहीं पर वह मालिक भी खड़ा है।
जिसका ये घर है।
वह देख रहा है, काम सही से हो रहा है कि नहीं ।
तभी उसकी एक बेटी आती है,उस मलिक की।
यही पांच-छः वर्ष की होगी।
उसके हाथ में एक छोटे बच्चों की किताब है।


खैर! वह बच्ची अपने पापा से किसी चीज की ज़िद कर रही है।
उसके नखड़े बहुत प्यारे है।
वही उसी की उम्र की एक और बच्ची है, वह बच्ची मजदूर की है।
वह बिल्कुल शांत , मेहनती स्वभाव की है ।
वो मजदूर की बच्ची अपने पिता से ज़िद नहीं कर सकती,उसे पता है उसके पिता उसे वह नहीं दे सकते।
दोनों बच्चियों की उम्र बराबर है।
लेकिन एक मालिक की है, तो एक मजदूर की।
एक अभी भी छोटी ही है,तो एक छोटी-सी उम्र में बड़ी हो गई।


( यह कहना ग़लत नहीं होगा,की किसी के हालात उसको बदलते है।पर इंसान हालात के भरोसे ना रह कर खुद काम करे ,तो वो अपनी तकदीर जरूर बदल सकता है। )

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