अकेला सफ़र... कठिन तो होता ही है....
आपके आंसू पोंछने वाला हर इंसान आपका हित चाहता हो ज़रूरी नहीं,
बहुत बार इन्सान तुम्हारा बनकर तुमसे तुम्हारा सबकुछ छीन ले जाता है,
जब निकलोगे अकेले सफ़र पर तो हर कोई अच्छा मिलें ज़रूरी नहीं,
कई बार अच्छाई के मुखौटे में बुरायी अपनाए लोग मिल जाते हैं।
अंजान रास्ते इतने भी आसान नहीं होते, बहुत कुछ झेलना पड़ता है,
कई बार रास्ते तो मिलते हैं लेकिन उनकी कोई मंजिल नहीं होती।
एक भरोसा ही तो है जो ना जाने कितनी बार धोखा देता है हमें,
और एक भरोसा ही है जो ना हो तो इंसान और रिश्ते सब खोखला हैं।
कभी कभी आंसू पोंछने वाला ही तुम्हारी आंखों को समन्दर दे जाता है,
दिल में रहने वाला तुम्हें अपने पैरों तले रौंद कर चला जाता है।
हर बार भरोसा करके देखते हो और हर बार चूर-चूर कर जाता है हर नया सख्श,
फिर एक वक्त आता है जब तुम उठ खड़े होते है दोबारा कभी ना गिरने के लिए।
उसी दिन से मर जाती हैं तुम्हारी अपनी ख्वाहिशें और जीने लगते हो दूसरों के लिए,
नहीं चाहिए उसी दिन से तुम्हें कोई, तुम्हें पसंद आने लगता है तुम्हारा अकेलापन।
और तुम्हारा ये अकलेपन बांटना नहीं चाहते किसी के संग फिर भी...
अगर चाहिए किसी को साथ तो तैयार हो जाते हो निस्वार्थ देने को.,
यह समर्पण तुम्हारा गिना नहीं जाता, तुम्हें मूर्ख समझा जाता है...
और तुम बन जाते हो अनभिज्ञ,बेवकूफ सबके लिए और अपने लिए भी।
© ~ आकांक्षा मगन “सरस्वती”
बहुत बार इन्सान तुम्हारा बनकर तुमसे तुम्हारा सबकुछ छीन ले जाता है,
जब निकलोगे अकेले सफ़र पर तो हर कोई अच्छा मिलें ज़रूरी नहीं,
कई बार अच्छाई के मुखौटे में बुरायी अपनाए लोग मिल जाते हैं।
अंजान रास्ते इतने भी आसान नहीं होते, बहुत कुछ झेलना पड़ता है,
कई बार रास्ते तो मिलते हैं लेकिन उनकी कोई मंजिल नहीं होती।
एक भरोसा ही तो है जो ना जाने कितनी बार धोखा देता है हमें,
और एक भरोसा ही है जो ना हो तो इंसान और रिश्ते सब खोखला हैं।
कभी कभी आंसू पोंछने वाला ही तुम्हारी आंखों को समन्दर दे जाता है,
दिल में रहने वाला तुम्हें अपने पैरों तले रौंद कर चला जाता है।
हर बार भरोसा करके देखते हो और हर बार चूर-चूर कर जाता है हर नया सख्श,
फिर एक वक्त आता है जब तुम उठ खड़े होते है दोबारा कभी ना गिरने के लिए।
उसी दिन से मर जाती हैं तुम्हारी अपनी ख्वाहिशें और जीने लगते हो दूसरों के लिए,
नहीं चाहिए उसी दिन से तुम्हें कोई, तुम्हें पसंद आने लगता है तुम्हारा अकेलापन।
और तुम्हारा ये अकलेपन बांटना नहीं चाहते किसी के संग फिर भी...
अगर चाहिए किसी को साथ तो तैयार हो जाते हो निस्वार्थ देने को.,
यह समर्पण तुम्हारा गिना नहीं जाता, तुम्हें मूर्ख समझा जाता है...
और तुम बन जाते हो अनभिज्ञ,बेवकूफ सबके लिए और अपने लिए भी।
© ~ आकांक्षा मगन “सरस्वती”