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शेरों की आखिरी गर्जना
ज़मीन पे बैठे दो शेर, सिर ऊंचा, आंखें तेज़,
बचपन की काया, मगर हौसले का कोई न मेज़।
बाजीर खान के दरबार में वो खड़े हुए थे,
हक़ की आवाज़ उठाने को अड़े हुए थे।

बोला बाजीर, "इस्लाम को अपना लो,
ज़िंदगी की दुआएं हैं, सब कुछ तुम संभाल लो।"
ज़ोरावर गरजा, "धर्म से हम पीछे नहीं हटेंगे,
गुरु गोविंद सिंह के बेटे हैं, झुकेंगे नहीं कटेंगे।"

ये ज़ोरावर और फतेह की बानी,
सच और हिम्मत की जो मिसालें जुबानी।
मरना मंजूर, पर झुकना नहीं,
गुरु के शेर हैं, डर का साया भी नहीं।


फतेह सिंह बोला, "जान से बढ़कर धर्म हमारा,
जो सिखी छोड़े, वो जीवन ही है हारा।"
दरबार में गूंजा उनकी बातों का लहज़ा,...