...

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एक ख़याल
इक "ख़्याल",
जाने क्यूँ
बार-बार आ धमकता है
मेरे मन मस्तिष्क में
हौले से,
चुपके से
अनायास ही,
समक्ष मेरे
सिर उठाये खड़ा हो जाता है
जाने कैसे,
निकल आता है बाहर
जबकि,
नीचे...बहुत नीचे ...