...

9 views

विषमुक्त भोजन, रोगमुक्त जीवन - 1
देसी बीज उगाते थे,
विषमुक्त भोजन पाते थे !
जीवामृत से कर पोषित,
हर जीव में जान बढ़ाते थे !!

विषारी कीटनाशक छिड़क कर,
जन स्वास्थ्य को तार तार कर !
बीज के गुण धर्म बदल कर,
पौष्टीकता से खिलवाड़ कर !!

आ पंहुचे हम, बीमारियों के आगोश में,
क्यूं नहीं आ पा रहे, आज भी होश में !
सारे विज्ञान को दिखा के अंगूठा,
अनुठा विषाणू है आज भी जोश में !!

भारत सदियों तक जगतगुरु रहा है,
ये स्वर्ण आखरों में दर्ज होता रहा है !
सूझबूझ में रहा है स्वर्णिम इतिहास,
अब नासमझी से सब कुछ तबाह हो रहा है !!

विज्ञान जब भी चादर से बाहर पैर फैलाता है,
प्राकृतिक प्रकोप उसे औकात-दर्शन कराता है !
प्राकृतिक गुण धर्म में भी उत्पादी दिमाग खुसाता है,
मुंह छिपाये बिना विषाणु से निपट नहीं पाता है !!

रसायनों से बचा रहे, रोटी का हर कौर,
आओ, लौट चले, पारम्परिक खेती की ओर !
अन्नशक्ति के सामने, विषाणु की औकात नहीं,
विषमुक्त भोजन के अवसरों का न छूटे कोई छोर !!

- आवेश हिन्दुस्तानी 3.12.2020