समर
उलझने सुलझती नही
सुलझी हुई चीजे और उलझ जाती है
मैं तोड़ती हूं कितने चक्रव्यूह
शाम होते होते खुद को
पाती हूं अभिमन्यु सा निहत्था
धराशायी, लहूलुहान
लेकिन अभिमन्यु पराजित कहां???
नितांत साहस के साथ
आज भी सांस लेता
अंतिम विकल्प
हाथ में रथ का पहिया
लिए मुझसे ये कहता
रण छोड़ना नहीं
लड़ना ही है आखिरी सांस तक
जीवन समर है l
© Shraddha S Sahu