...

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हर पल में कुछ खुशनुमा
चिड़ियों का गाना ,सुबह की सहर
बारिश की बूंदे, मौसम की पहल

यादों की टोकरी, हसीं की चहल
नानी की कहानियो में बड़ा सा महल

वो बैलों का चढ़ना, मानो पतंगों की "डोर "
समुद्रो की लेहरो का बदलना उस छोर

उपन्यासों को पढ़कर के ,यूँ मुस्कुराना
फिर चुपके से होंठों पे ,कुछ गुनगुनाना

उड़ती सी तितली को, छूकर चहकना
फिर धुप की किरणों में ,कणों को पकड़ना

खुद के लिखें पन्नो में ,यूँ खों सा जाना
की गिरकर है उठना, फिर उठकर संभलना

खिड़की की जाली से ,ताका झांकी करना
वो पर्दो में छिपकर, छुपन छू खेलना

जो तारे न दिखे तो ,ढूंढा उनको करना
और आटे के लोए से ,सपनों को बुनना

बचपन के इन पलों को सिर्फ सिमट कर ना रखना
फिर से वो सब यादों को जी भर के जीना :)

कौन कहता है जीवन में बस दुःख है
मुझे तो इसके हर पल में कुछ खुशनुमा सा दिखता है