मन का ताला
© Nand Gopal Agnihotri
#नमन मंच
#ता २४/११/२०२४
# मन का ताला
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सुबह हुई फिर शाम ढली,
जब शाम ढली फिर रात हुई।
जब रात हुई तन्हाई थी,
मैं था और मेरी रजाई थी।
अब नींद नहीं थी आंखों में,
कुछ उलझन सी थी मेरे मन में।
क्यूं रुठ गई है नींद आज,
तब लगा सोचने मैं मन में।
चलचित्र की भांति दृश्य सारे,
आंखों से होके...