कुछ यूं फिसल गया
जाने कब ज़िन्दगी का ,वो खूबसूरत दौर निकल गया,
बचपन का रेत मुट्ठी से ,कुछ यूँ फिसल गया,
ख्वाहिशें जो पूरी होती थी कभी ,पलक झपकते ही,
अब तमन्नाओ का पूरा खाँचा ,मजबूरी में ढल गया,
दर दर भटक कर भी ,कहीं मन्जिल नही दिखती,
हम थम गए और वक़्त , जाने क्यों ...
बचपन का रेत मुट्ठी से ,कुछ यूँ फिसल गया,
ख्वाहिशें जो पूरी होती थी कभी ,पलक झपकते ही,
अब तमन्नाओ का पूरा खाँचा ,मजबूरी में ढल गया,
दर दर भटक कर भी ,कहीं मन्जिल नही दिखती,
हम थम गए और वक़्त , जाने क्यों ...