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स्फूर्ति देती कविता
#WritcoPoetryDay

दिन महीने और साल
सब होते आंसू से बेहाल
अगर होता नहीं ये कमाल
लिखने का गर मन मे आता नहीं खयाल।

बहुत सोच कर की थी शुरूआत
बच्चों का अपने था साथ
अपने समय को करनाथा व्यतीत
खुद को न करना था व्यथित।

प्रातः होते सब अपने साथ
दोपहर तक होते सारे काज
संध्या बेला में जब पड़ते थे अकेल कहती कलम और किताब ,मैं हूं आओ दोस्त।

बीती वर्षा, बीता शीत,बीते ग्रीष्म कयी
पर सखी हमरी त्यजती नहीं स्नेही
यह मन का मोल,समय का साथी, प्रेम का बोल,शब्दों का श्रृंगार,हृदय का साक्षी।

जल,थल,नभ सब में व्याप्त
ये मन का बोध,समय का ज्ञान
व चित को शांत कर,प्रेम का आलिंगन
जीवन में स्फूर्ति देती है ये कविता।