...

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गुलिस्ताँ
कोई इनको भी समझाए,
सभी भटके को मार्ग दिखाए।
राष्ट्र ही सर्वोतम धर्म है,
कोई इसका पाठ पढ़ाए।

चाहें जख्मी हो कोई मंदिर,
चाहें मस्जिद घायल हो जाए।
आहत होता सदा वतन ही,
चोटिल दर्द सही ना जाए।

ना कोई जाति ना कोई मजहब,
राष्ट्रीयता मे बसी सभी सदाएं।
कुछ लोग अपनों से बिछुड़ गए हैं,
चलो उन्हें घर वापिस लाएं।

लड़ते रहने के न कोई मायने,
आओ हिलमिल चमन महकाए।
जिनके रूह मे अब भी है नफरत,
चलो उन्हें हम मरहम लगाएं।

सदाएं - आवाज।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey