...

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बिरहन
मेघ घीर आते है
बरसने बूंद बैचेन रहती है
तपती बिरहन दबे पाँव
लौट जाती है|
हा!अक्सर आजकल यही होता है

बंद होठ बिन कहकर
अल्फाज कवितायें गिले हो ...