...

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गनपतिपरिवार
एक समय की बात है
दूर नगर में एक बुढ़िया रहती
बुढ़िया क्या रहती
जब देखो तब खाँसती रहती
घर में भी उसे देख लोग कहते
इस बुढ़िया ने तो जीना हराम
कर रखा है
जब देखो तब खाँसती रहती
खाँसी थी की ठीक होने का
नाम ही न ले रही थी
बुढ़िया हताश निराश हो
गणपतिजी के पास जा
अपना रोना रोने लगी
बुढ़िया बोली कोई न मेरे
पास आता है
खों खों के नाम से मुझे पुकारा जाता है
मेरा भी मन करता
पोती पोता खिलाने का
लेकिन क्या करूँ
इस बीमारी के कारण कोई
मेरे नज़दीक न आता है
तभी दरवाज़े से
खट खट की थी आवाज़ आई
बुढ़िया के पोते ने
दरवाजा खोला
पोता बुढ़िया से आ बोला
माँ इक बालक
मोटा मोटा आया
पीली धोती हाथ में कमंडल
ले आया है
नाम पूछा तो गन्नू बतलाया
पेट बाहर को है निकला हुआ
बुढ़िया खों खों की
आवाज़ से थोड़ा दिखा
डरा हुआ
बुढ़िया ने जब सुना
गन्नू नाम दिव्यदृष्टि से
पहचान लिया
हो न हो गणपतिजी
बालक का रूप धर आए
दरवाजा खोलते ही
बहु ने आवाज़ लगाई
माँ जी क्यों तुमको बात
समझ न आती
कोई भी आए जाकर
दरवाज़े पे खड़ी हो जाती
अपनी बीमारी का भी
लिहाज़ न करती...