...

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विष वास
ज़हर मैने भी ये पिया था
विश्वास किसी पर किया था
ना सोचा , ना समझा जान
हथेली पर उसके रख दी
मैंने अपनी जिंदगी उसके नाम तक
कर दी , उसकी खुशी में अपनी
खुशी तलाशने लगी, उसके हर
एक गम को अपना मानने लगी
धीरे धीरे विश्वास का विष उतरने
लगा , वो मौसम की तरह बदलने
लगा ....... उसकी मीठी मीठी
बाते अब विष का कड़वा घूट
लगने लगी, उसकी कसमें वादे
सब झूठे हो गए.......…
करके मेरे अरमानों का कत्ल
सरेआम , मुकर गए.......
उनके इस धोखे से हम ज़रा
संभल गए, या यूं कहे की
बदल गए ।

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