...

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मैं ही क्यूं?
तुम, तुम्हारा होना जैसे कड़ी धूप मे पेड़ की छांव सा होना,
सूखे मे जैसे के बारिश से मिट्टी की सोंधी सी खुशबू का होना,
तुम, तुम्हारा होना जैसे भूखे को रोटी की सुगंध सा होना,
मुरझाए पत्तो पे खिले गुलाब सा होना,
तुम, तुम्हारा होना जैसे डूबते को तिनके का सहारा,
नांव को पार लगाने वाले पतवार के जैसा,
बाकी रही बात की तुम ही क्यों,
तो इतना आसान थोड़ी ना है तुम्हारे जैसे होना,
ऐसा कहना अतिशयोक्ति तो नही कि तुम्हारा होना जैसे संपूर्ण जीवन का होना।
© आलोक❤️