...

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संविधान...
बाद आज़ादी के परिस्थितियां उत्पन्न हुई तमाम।
कैसे हो बिखरे हुए भारत का उत्थान,
क्या लक्ष्य, क्या उद्देश्य हो,
कैसे हो समस्याओं का निदान।
देश को संचालित करने वाला
चाहिए था एक विधान।
नागरिकों के हितों की रक्षा करने हेतु चाहिए था संविधान।
विश्व के विधानों का कर गहन विचार,
भीमराव,राजेंद्र और सरदार,
सुचेता, सरोजिनी संग जवाहर,
कइयों ने मिलकर निर्मित किया,
भारत के भविष्य का आधार।
ये सिर्फ स्याही से लिखी किताब नहीं थी,
इसमें विधिक, कार्य और न्याय की स्वतंत्रता, शिक्षा, अभिव्यक्ति, स्वास्थ्य और भेदभाव सर से मुक्ति और शामिल किए नागरिकों के अधिकार।
राष्ट्र की अखंडता, एकता और कर्तव्यों का सार।
राग- द्वेष, छुआछूत, ऊंच-नीच की न हो दुर्भावना।
'हम भारत के लोग'
यह कहती है प्रस्तावना।
हो अधिकारों का हनन तो तुम लड़ो,
मगर अधिकारों की आड़ में
राष्ट्र का न क्षय करो।
एक भारत श्रेष्ठ भारत का संकल्प करे
अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी पालन करे।
देश की अखंडता, एकता और सर्वांगीण विकास में सहभागी बने
आओं देश के निर्माताओं को नमन करे।

© मनीषा मीना