...

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ख़ामोशी
मेरी ख़ामोशी में इताब भी है,
सिर्फ़ शोले नहीं, शिताब भी है।

बे-क़ुसूरी का इक अज़ाब भी है,
दिल के ज़ख़्मों का इक हिसाब भी है।

इतने दिन से मुझे पता नहीं था,
सबके चेहरों पे इक नक़ाब भी है।

हर सितम सह रहे हैं चुप रह कर,
अब गुनहगार का ख़िताब भी है।

दिल में ग़म के अलावा कुछ भी नहीं,
इस उदासी में इज़्तिराब भी है।

सिर्फ़ कमज़ोर को दबाते हैं लोग,
तर्ज़ गंदा भी है, ख़राब भी है।

वक़्त आने पे हम भी बोलेंगे,
सब सवालों का इक जवाब भी है।
© Azaad khayaal
2122 / 1212 / 112 या 22
(इताब = क्रोध, गुस्सा)
(शिताब = आग की लपट)
(अज़ाब = पीड़ा, यातना)
(इज़्तिराब = व्याकुलता)
(तर्ज़ = स्वभाव)