...

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" यादों के दीए "
मेरी विरह वेदना पर
पतझड़ भी गुमसुम सा बैठा है
उम्मीदों के आश लगाए
शीतल बूंदें अब जीवन को अंगार लगती हैं
पेड़ों की घनी छाया तप्त लगती हैं
ऐसी है मेरी विरह वेदना की स्थिति
यादों के दीए बुझे बुझे से हैं
जैसे सारस पक्षी अपनी प्रेमिका के वियोग में
खोया खोया सा रहता है
अपनी सुधबुध खो बैठा है
न उसे दिन का होश है न ही रात का
वैसी मेरी मनोदशा व्याकुल सा रहता है
मुझे वो चांदनी रातें याद आया करती हैं
जब तुम ठंडी झील के किनारे
हर रोज आती थी
फ़िर वो रात...