...

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भावशून्य नेत्र
भावशून्य ये नेत्र मेरे
अब इसमें आंसू , मोती
का सृजन ना मात्र है
पत्थर है ये हदय मेरा
अब इसमें ना किसी
का स्थान है ...….मेरे
इस विचलित मन में
ना जाने कैसा अवसाद है
निराशा , के ये घने मेघ
मुझ में अंधकार का
करते संचार...