मन और मस्तिष्क
कोई नहीं सुनता किसी की
मन भाव.. और मस्तिष्क यथार्थ पर चलता है..
किसी पथ विशेष का जब अनुगमन करना होता है..
जहाँ मानव मस्तिष्क "ना" औऱ मन "हाँ"कर रहा होता है..
तब महासंग्राम दो योद्धाओं पर चलता है..
कोई नहीं सुनता किसी की..
मन पर मस्तिष्क का प्रहार तीखा होता है
औऱ मन का प्रतिप्रहार अत्यंत मीठा होता है
क्योंकि मस्तिष्क चेतनाओं औऱ मन वेदनाओं पर चलता है..
कोई नहीं सुनता...
मन भाव.. और मस्तिष्क यथार्थ पर चलता है..
किसी पथ विशेष का जब अनुगमन करना होता है..
जहाँ मानव मस्तिष्क "ना" औऱ मन "हाँ"कर रहा होता है..
तब महासंग्राम दो योद्धाओं पर चलता है..
कोई नहीं सुनता किसी की..
मन पर मस्तिष्क का प्रहार तीखा होता है
औऱ मन का प्रतिप्रहार अत्यंत मीठा होता है
क्योंकि मस्तिष्क चेतनाओं औऱ मन वेदनाओं पर चलता है..
कोई नहीं सुनता...