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ख़ामोशी
जाने कैसे गुमराह हो गई वो हलचल
जो कभी हमारे तुम्हारे दरमियान थी
कि दिन भर की कुलबुलाहट समेटे
रात की ख़ामोशी में मोहब्बत जवां थी
प्रत्येक प्रहर का तिब्र गति से निकल जाना
तेरा यूँ बेसब्री से इंतज़ार करना क्या बात थी
जाने कैसे गुमराह हो गई वो हलचल
जो कभी हमारे तुम्हारे दरमियान थी
© स्वरचित Radha Singh
जो कभी हमारे तुम्हारे दरमियान थी
कि दिन भर की कुलबुलाहट समेटे
रात की ख़ामोशी में मोहब्बत जवां थी
प्रत्येक प्रहर का तिब्र गति से निकल जाना
तेरा यूँ बेसब्री से इंतज़ार करना क्या बात थी
जाने कैसे गुमराह हो गई वो हलचल
जो कभी हमारे तुम्हारे दरमियान थी
© स्वरचित Radha Singh
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