...

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कभी कभी...
कुछ पल हमने भी साथ मे, बिताए थे कभी...
बातों के बहाने बिलकुल, पास आए थे कभी...

गालों को छूते बालों को, हाथो से हटाया था...
इसी बहाने मेरे गालों को तूने, छुआ था कभी...

कुछ देर सब चुप रहा था, माहोल आसपास का...
फिर सांसों की गर्मी को, महेसस किया था कभी..

वोह नजदीकिया, सुकून दे रही थी दोनो को...
हाथो में हाथ था, ना छुड़ाना चाहा था कभी...

हवा का चलना भी, रुका सा गया था तभी...
जब तेरी रूह ने, मेरी रूह को  छुआ था कभी।

- बिंदीया

© Bindiya