...

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भटका रही...
है! राही जिस डगर पर तू चल पड़ा है,
वहां तक जाती कोई नज़र है क्या?
वीरान राहों पर महफूज है कश्ती तुम्हारी,
सोचा है कभी-
किसी की दुआओं का असर है क्या?
बात सुकून की हो तो देखना,
इस डगर में तुम्हारा भी कोई नगर है क्या ?
ख्वाबों के मंजर में इतने भी मशगूल हो न जाना तुम,
लौटकर आने की चाहत हो तो देखना,
कदमों में इतनी तो रफ्तार है क्या?
भटके राही मत हो जाना,
खैरियत पूंछ सके कोई अपना,
इतने तो नजदीक रहना,
वरना तेरे ही शहर में कहेगा जमाना,
उसकी कोई खबर है क्या...?
है! राही जिस डगर पर तू चल पड़ा है,
वहाँ तक जाती कोई नज़र है क्या..?
✍️मनीषा मीना