ज़िंदगी एक किताब
अगर मेरी जिंदगी एक किताब होती
तो उसका शीर्षक होता - "गुमनाम ज़िंदगी"
मैं उसमें लिखती ऐसी दास्ताँ
जिसे कोई मेरे रहते समझ न पाया
मैं लिखती दिल के दबे अहसास
जिसे आज कोई जानना नहीं चाहता
मैं बताती पलकों के स्वप्न
जो कबके बिखर...
तो उसका शीर्षक होता - "गुमनाम ज़िंदगी"
मैं उसमें लिखती ऐसी दास्ताँ
जिसे कोई मेरे रहते समझ न पाया
मैं लिखती दिल के दबे अहसास
जिसे आज कोई जानना नहीं चाहता
मैं बताती पलकों के स्वप्न
जो कबके बिखर...