ग़ज़ल 1: सबको यकीं है वो मुझसे प्यार नहीं करेगी
सबको यकीं है वो मुझसे प्यार नहीं करेगी
अपने दिल का मुझे दिलदार नहीं करेगी
मैं चूम लूं उसके लबों को उससे पूछे बगैर
मुझे यकीं है वो मुझे इनकार नहीं करेगी
ये क्या उसकी नज़रों में मैं झलक रहा था
मुझे डर था वो मुझसे नज़रें चार नहीं करेगी
रूठी हुई ख़ुद मुझे मनाने जब भी आती है ...
अपने दिल का मुझे दिलदार नहीं करेगी
मैं चूम लूं उसके लबों को उससे पूछे बगैर
मुझे यकीं है वो मुझे इनकार नहीं करेगी
ये क्या उसकी नज़रों में मैं झलक रहा था
मुझे डर था वो मुझसे नज़रें चार नहीं करेगी
रूठी हुई ख़ुद मुझे मनाने जब भी आती है ...