रहे तो क्या रहे
महज़ इत्तेफ़ाक़ ही तो है,
जिस वक्त में साथ रहे,
महज़ एकतरफा रहे तो है,
जिस बात में रात रहे,
महज़ दरिया ही तो है,
जिसमें न डूब रहे न उभर रहे,
महज़ ख्वाइश ही तो है,
जिसको खो रहे न पा रहे,
महज़ राब्ता ही तो है,
जिस ओर हम जा रहे,
महज़ हम ही तो है,
जिस पल में सब खो रहे,
महज़ इत्तेफ़ाक़ ही तो है,
जिस वक्त में साथ रहे।
© MaHe
जिस वक्त में साथ रहे,
महज़ एकतरफा रहे तो है,
जिस बात में रात रहे,
महज़ दरिया ही तो है,
जिसमें न डूब रहे न उभर रहे,
महज़ ख्वाइश ही तो है,
जिसको खो रहे न पा रहे,
महज़ राब्ता ही तो है,
जिस ओर हम जा रहे,
महज़ हम ही तो है,
जिस पल में सब खो रहे,
महज़ इत्तेफ़ाक़ ही तो है,
जिस वक्त में साथ रहे।
© MaHe