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ज्योति पर्व

फैल रहा जग में अंधियारा
किसे होश है आज यहां
अपनी हस्ती मिटता देखे
ऐसा है कोई जगा कहाँ

आज सभी हैं धन के भूखे
कोन असुर दल रोकेगा
समर मांगती है कुर्बानी
है कोन जो खुद को झोंकेगा

फिर से जग जाए वीर शिवा
इस अंधियारे से लड़ने को
फिरसे कोई...