आ तुझे तेरे रुह की मंजिल से राबता कराता हूँ
आ... तुझे, तेरे सपनों की महफिल से मैं रुबरू कराता हूँ,
रुह को जो परसुकून दिलाते हैं, तुझसे वो नुस्खे याद कराता हूँ;
आ... तुझे, तेरे सपनों की महफिल से मैं रुबरू कराता हूँ।।
जिंदगी के जिम्मेदारियों ने, पछाड़ दिये होंगे तुझकोे, काफ़ी तेरे मंजिलों से,
सोच इन्हे भी आँखों से लहू छलककर करते होंगे कोई फरियाद तेरे उसूलों से,
मुकाम और अहक़ाम के बीच जो रहगये हैं फासले, तुझसे ये दूरियाँ मिटाता हूँ,
आ... तुझे, तेरे...
रुह को जो परसुकून दिलाते हैं, तुझसे वो नुस्खे याद कराता हूँ;
आ... तुझे, तेरे सपनों की महफिल से मैं रुबरू कराता हूँ।।
जिंदगी के जिम्मेदारियों ने, पछाड़ दिये होंगे तुझकोे, काफ़ी तेरे मंजिलों से,
सोच इन्हे भी आँखों से लहू छलककर करते होंगे कोई फरियाद तेरे उसूलों से,
मुकाम और अहक़ाम के बीच जो रहगये हैं फासले, तुझसे ये दूरियाँ मिटाता हूँ,
आ... तुझे, तेरे...