...

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तीन अजनबी
#साझासपने
मैं स्टेशन पे बैठा सोच रहा था
कि हारा हुआ नसीब मुझको
कहाँ ले जायेगा, कोशिश तो कर रहा हूँ
मेरा वक़्त कब आयेगा |
बेरोजगारी का दंस झेल ऊब गया हूँ मैं
भाग्य मेरा कब उजाला ले के आयेगा,
डिग्रीयों से मेरी फाइलें भर चुकी अब तो
नौकरी तलाशने को किस दर दर भटकाऐगा |
ट्रैन की सीटी बजी और तंद्रा मेरी भंग हुई,
दौर कर आखिरकार ट्रैन से बाजी जीत ली,
चलो जीता कही यह जान कर थोड़ी खुशी हुई|
पीछे से दो लड़के ट्रैन पकड़ने को थे दौड़ रहे
हाथ बढ़ाया तो झट ऊपर खींच लिया
सीट पे बैठ हम तीनों तेज तेज हांफ रहे,
और इक दूजे को तिरछी नज़र से ताक रहे |
कुछ देर बाद बातों का सिलसिला शुरू हुआ,
पता चला तीनों इक ही मंज़िल को चले
सोचा अकेले से अच्छा भला ये साथ हो लिए,|
उनकी भाग्य की रेखा बिलकुल मेरी ही जैसी,
कुदरत ने मिलाय शायद गम बाँट सके बन हितैषी |
नाम तक ना पता था इक दूजे का ज़िन्दगी के किस्से बांटने को चले,
तीन अजनबी अपना दुःख बांटने को चले |
उन दोनों की दसा बिलकुल मेरी जैसी थी,

एक जैसी डिग्रीयां ठोकरे भी एक सी थी |
पता चला आज की दुनियां में अजनबी बहुत मिलेंगे,
एक ही मंज़िल के मुसाफिर से दिल के तार जुड़ पड़ेंगे |
हम तीनों हाथ थाम एक दूजे का मुस्कुरा दिए,
ख्वाब होंगे पूरे यक़ीनन सोच गुनगुना दिए ||


© shweta Singh