...

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पौधे भी समझ जाते हैं
जब शाम को हम बाहर अहाते में बैठते हैं
कुदरत का नजारा देखते हैं
शुद्व हवा को ग्रहण करते हैं
जितने भी फूल फल के पौधे लगे हैं
सबको ध्यान से देखते हैं
कुछ पौधे मुरझाए हुए होते हैं
उनपर हम पानी छिड़कते हैं
जैसे ही पानी मिलता है ,
पत्ती फिर लहलहाने लगती है
जैसे लगता है ये अपने आलस्य से बाहर आ गए
लेकिन कुछ ऐसे भी पौधे होते हैं
जो अपने आप उग जाते हैं
उनको पानी न डालो फिर भी बढते हैं
एक ऐसा ही पौधा उग गया था
किसी ने उसको आधा तोड़ दिया
दो महीने पहले लेकिन वो पौधा टूटा हुआ ही,
अब इतना बड़ा हो गया कि हम ये देखकर,
आश्चर्यचकित रह गए आज
जो पौधे हम लगाते है उसकी कितनी देखभाल
करते हैं,फिर भी कभी कभी वो सुख जाते हैं
लेकिन जिस पौधे को किसी से कोई भी,
उम्मीद नही होती वो किस तरह से
हर हाल में सर्वाइव करते हैं
वो समझते हैं उनको सिर्फ अपना ही सहारा है
डार्विन लॉ चाहे जो हो पर हमें भी यही लगता है
इंसान हो या पौधा जिसका कोई नही रहता
वो हर हाल मे खुद सर्वाइव कर लेते हैं
इंसानों की तरह पौधे भी सब समझते हैं ।।