...

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मैं चाहता हूं इंसान को रोकना
मैं चाहता हूं,
एक रोटी की अहमियत भूख से बड़ी हो,
पैसे की अहमियत जरूरत से कम हो,
नींद की अहमियत थकान से ज्यादा हो।
पर यह मैं क्या चाहता हूं?
इंसान को रोकना?
इंसान नहीं रुकेगा।

वह प्रगतिशील है,
तेज गति से भाग रहा है,
इतनी तेज कि उसने
मंजिल तक पहुंचने का सपना भी
बस दौड़ते-दौड़ते ही देखा है।
पर वह मंजिल कैसी है?
जहां कोई आता-जाता नहीं,
जहां सन्नाटा है, अकेलापन है।

उसने अपना जीवन
एक लक्ष्य में बांध दिया है,
पर...