ओ कान्हा...
ओ कान्हा, तू ही जाने मेरा दर्द,
क्यों बाहर की हँसी, क्यों भीतर का ब्याहण है छुपा,
दिल में तेरे बिना है ये दुःख का समुंदर।
तू है मेरा आदर्श, तू ही मेरा जीवन,
तेरी कृपा के बिना, मेरा कुछ नहीं माया।
जब तू हो साथ, तो हर कठिनाई है आसान,
तू मेरी आत्मा का प्यारा सच्चा सहयोगी जीवन माया।
क्योंकि तू ही मेरा साथी, मेरा गुरु और प्रणेता,
तू ही मेरा राखा, मेरा मार्गदर्शक, मेरा सुख-दुःख का पता।
ओ कान्हा, तेरे बिना मेरा जीवन अधूरा,
तू ही मेरा प्रेम है, मेरा आदर्श, मेरा सबकुछ पूरा।
इस भक्ति भाव से लिखा है ये छंद,
तेरे प्रेम में डूबकर, मैं पाता हूँ आनंद।
तू ही मेरा कान्हा, मेरा सबकुछ तू ही है,
तेरी भक्ति में लिपटकर, मैं अपने आप को पा लिया है।
© P.Parmar
क्यों बाहर की हँसी, क्यों भीतर का ब्याहण है छुपा,
दिल में तेरे बिना है ये दुःख का समुंदर।
तू है मेरा आदर्श, तू ही मेरा जीवन,
तेरी कृपा के बिना, मेरा कुछ नहीं माया।
जब तू हो साथ, तो हर कठिनाई है आसान,
तू मेरी आत्मा का प्यारा सच्चा सहयोगी जीवन माया।
क्योंकि तू ही मेरा साथी, मेरा गुरु और प्रणेता,
तू ही मेरा राखा, मेरा मार्गदर्शक, मेरा सुख-दुःख का पता।
ओ कान्हा, तेरे बिना मेरा जीवन अधूरा,
तू ही मेरा प्रेम है, मेरा आदर्श, मेरा सबकुछ पूरा।
इस भक्ति भाव से लिखा है ये छंद,
तेरे प्रेम में डूबकर, मैं पाता हूँ आनंद।
तू ही मेरा कान्हा, मेरा सबकुछ तू ही है,
तेरी भक्ति में लिपटकर, मैं अपने आप को पा लिया है।
© P.Parmar