...

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न बिघड़ जाए।
हवाओं की सोहबत में बारिशें न बिगड़ जाए,
मैं बात कर भी लूं मगर फिर बात न बिगड़ जाए।

मसला हैं यह के तुझसे मोहब्बत करते हैं हम,
डर हैं सिर्फ़, इज़हार में हमारी यारी न बिगड़ जाए।

समंदर ने मिला लिया हैं हाथ कश्ती से डुबते,
फिक्र है अब लहरों का किनारा न बिगड़ जाए।

रातों से ज्यादा अच्छी नहीं है दोस्ती वासील,
कहीं नींद का आँखों से रिश्ता न बिगड़ जाए।

इतना न दिक्खो तुम बाज़ार में रोज़ ओ मेहरबां,
के नाम से तुम्हारे महफ़िल का अंदाज़ न बिगड़ जाए।

कितना कुछ कहना हैं, कितना कुछ बाकी हैं,
फिर कभी ही सही अभी विसाल ए रात न बिगड़ जाए।


© वि.र.तारकर.