इस ख़ुशी के लिए
परिवार ख़ातिर दर-दर, भटकता है आदमी,
टेकता माथ कही एड़ियाँ घिसता है आदमी।
उठाता है वह अपने बराबर से अधिक वज़न,
कितनी बातें सुनी अनसुनी करता है आदमी।
इस...
टेकता माथ कही एड़ियाँ घिसता है आदमी।
उठाता है वह अपने बराबर से अधिक वज़न,
कितनी बातें सुनी अनसुनी करता है आदमी।
इस...