...

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इस ख़ुशी के लिए
परिवार ख़ातिर दर-दर, भटकता है आदमी,
टेकता माथ कही एड़ियाँ घिसता है आदमी।

उठाता है वह अपने बराबर से अधिक वज़न,
कितनी बातें सुनी अनसुनी करता है आदमी।

इस ख़ुशी के लिए, कभी उस ख़ुशी के लिए,
दाँव पे दाँव अपना ही लगा जाता है आदमी।

कोई पूछता है उससे, खुशियों का पता अगर,
घर का पता वो अपने पता बताता है आदमी।

खुशियाँ चाहे टूकडों में बाँट दे कोई कहे 'सोनी'
तिनका-तिनका जोड़ गेह बना लेता है आदमी।
© सोनी