मैं अब भरा बैठा हूं,
इन दिनों खुद ही से मैं गमजदा सा बैठा हूं,
यानि मुहब्बत से कुछ मैं अब भरा बैठा हूं,
गर वो पुकारे आवाज ओ गमजदा में और,
आह तक न लूं, इस क़दर हो खफा बैठा हूं,
पल्ले पड़ना नहीं ये एहतिराम-ए-'इश्क़ अब,
मौज ए तबस्सुम से शुतुर-कीना करा बैठा हूं,
मैं निकला गली से उसकी की उसे यकीं आए,...
यानि मुहब्बत से कुछ मैं अब भरा बैठा हूं,
गर वो पुकारे आवाज ओ गमजदा में और,
आह तक न लूं, इस क़दर हो खफा बैठा हूं,
पल्ले पड़ना नहीं ये एहतिराम-ए-'इश्क़ अब,
मौज ए तबस्सुम से शुतुर-कीना करा बैठा हूं,
मैं निकला गली से उसकी की उसे यकीं आए,...