...

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ग़ज़ल - तारिक़ पे इनाम लगाओ।
तोहमतें तमाम लगाओ
हर दम मेरा नाम लगाओ।

जब भी दिल तुम्हारा टूटे
मुझ पे ही इलज़ाम लगाओ।

अब तो चोरी चुपके छोड़ो
दिल को सर-ए -आम लगाओ।

मुझ को भी मसरुफ कर दो
इशक़ में मेरा काम लगाओ।

ये बस्ती बाज़ार है बाबु
बेचो खुद को, दाम लगाओ।

छोड़ो सब की प्यास, ओ साकी
बैठो तुम भी जाम लगाओ।

कैसे अब तक ज़िंदा है ये?
तारिक़ पे इनाम लगाओ।


© TRQ

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