ग़ज़ल - तारिक़ पे इनाम लगाओ।
तोहमतें तमाम लगाओ
हर दम मेरा नाम लगाओ।
जब भी दिल तुम्हारा टूटे
मुझ पे ही इलज़ाम लगाओ।
अब तो चोरी चुपके छोड़ो
दिल को सर-ए -आम लगाओ।
मुझ को भी मसरुफ कर दो
इशक़ में मेरा काम लगाओ।
ये बस्ती बाज़ार है बाबु
बेचो खुद को, दाम लगाओ।
छोड़ो सब की प्यास, ओ साकी
बैठो तुम भी जाम लगाओ।
कैसे अब तक ज़िंदा है ये?
तारिक़ पे इनाम लगाओ।
© TRQ
#trq #Hindi #urdupoetry #ghazal #forfun
हर दम मेरा नाम लगाओ।
जब भी दिल तुम्हारा टूटे
मुझ पे ही इलज़ाम लगाओ।
अब तो चोरी चुपके छोड़ो
दिल को सर-ए -आम लगाओ।
मुझ को भी मसरुफ कर दो
इशक़ में मेरा काम लगाओ।
ये बस्ती बाज़ार है बाबु
बेचो खुद को, दाम लगाओ।
छोड़ो सब की प्यास, ओ साकी
बैठो तुम भी जाम लगाओ।
कैसे अब तक ज़िंदा है ये?
तारिक़ पे इनाम लगाओ।
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