ज़िक्र तुम्हारा
मैं ख़ुद से ही किया करती हूँ
सुबह दोपहर शाम किया करती हूँ
बादल से हवाओं से पत्तों से
शाखों से चाँद से गुज़ारिश करती हूँ
मेरी याद तुम तक पहुँचा दी जाये
रब से ऐसी एक फरमाइश करती हूँ
मैं तेरा ज़िक्र ख़ुद से और ख़ुदा से किया करती हूँ
© बावरामन " शाख"
सुबह दोपहर शाम किया करती हूँ
बादल से हवाओं से पत्तों से
शाखों से चाँद से गुज़ारिश करती हूँ
मेरी याद तुम तक पहुँचा दी जाये
रब से ऐसी एक फरमाइश करती हूँ
मैं तेरा ज़िक्र ख़ुद से और ख़ुदा से किया करती हूँ
© बावरामन " शाख"