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कर्म की चादर
#स्वतंत्रता_प्रयास
कर्म की चादर में लिपटकर सोया है कोई ।
कल रात को जाग जागकर रोया है कोई ॥
मत पूछो जिंदगी परेशान क्यों है उसकी ।
दावत है मतलब का कहीं खोया है कोई ॥
परेशानियों का दौर है तड़पन ज्यादा है ।
बेमतलब कि आस लगाए बोया है कोई ॥
क्या चाहिए जिंदगी को जीवन के सिवा ।
आंखों में पानी लिए मन मसोया है कोई ॥
जीत लो किसी का दिल " विश्वकर्मा जी "
बेपनाही का सबूत लिए भी ढोया है कोई ॥
© ✍️ विश्वकर्मा जी
कर्म की चादर में लिपटकर सोया है कोई ।
कल रात को जाग जागकर रोया है कोई ॥
मत पूछो जिंदगी परेशान क्यों है उसकी ।
दावत है मतलब का कहीं खोया है कोई ॥
परेशानियों का दौर है तड़पन ज्यादा है ।
बेमतलब कि आस लगाए बोया है कोई ॥
क्या चाहिए जिंदगी को जीवन के सिवा ।
आंखों में पानी लिए मन मसोया है कोई ॥
जीत लो किसी का दिल " विश्वकर्मा जी "
बेपनाही का सबूत लिए भी ढोया है कोई ॥
© ✍️ विश्वकर्मा जी
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