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वाणावादिनि वर। दे
वर दे वीणवदिनि‌। वर दे । प्रिय स्वतंत्र रव अमृता मन्त्र नव भारत में भर दे काट अन्ध उर के बन्धन स्तर ‌ बहा जननि ज्योति मर्मय निर्झर ‌। कलुष भेद तम हर, प्रकाश भर ‌ जगमग जग कर दे नव गति नव लय ,ताल धन्द नव , नवल कंठ ,नव लय जलद मनद्ररव , नव नभ के ‌ विहग वृन्द को ‌‌। नव पर नव स्वर दे


rupam dubey