...

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ख़बर न हुई
बा-ख़बर थे हाल-ए-दिल से तो, क्यों मेरे तन्हा दिल की उन्हें ख़बर न हुई,
उगे ये शम्स हर रोज ही ज़मीं पे, पर मेरी आँखों में अब तलक़ सहर न हुई।

कोशिशें कई करी हमनें, उनके गोशा-ए-दिल में आशियाँ बनाने की पर,
तदबीर कोई काम न आयीं मेरे और कोशिशें कभी कारगर न हुई।

मुख़्तलिफ़ थे हम दोनों और मुख़्तलिफ़ हो गए थे ख़्यालात अपने,
मोहमल हो गयी तक़रीर और सोच अपनी कभी हम-नज़र न हुई।

गोया राह-ए-इश्क़ में बेवफ़ाई कर मुझसे, गुनाह संगीन कर गए थे वो,
लाख मिन्नतों के बाद भी, इस ज़ुर्म पे उन्हें दिल से दर-गुज़र न हुई।

कोई भी मरहम कोई शिफ़ा काम न आयी, मेरे इस बीमार-ए-दिल पर,
निज़ात कहाँ दिलाते वो, उन्हें तो मेरे ग़म की कभी ख़ैर-ख़बर न हुई।
#ख़बरनहुई
#ग़ज़ल
@Pankaj_bist_ruhi
© Pankaj Bist 'Ruhi'