...

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क्यों नारी नहीं सुरक्षित है ?
नारी तुम श्रद्धा नहीं रहीं,
स्नेह समर्पण क्रीजों में।
कभी सूटकेस मिलता है
कभी दिखती हो तुम फ्रिजों में।।

तलवार रखो तुम हाथों में,
शैतानी मुंड उतरवा दो।
फांसी की अब मांग नहीं हैं,
आग में जिंदा जलवा दो।।

तुुम दंड विधान बदलवा दो,
यह हल्का रहा गुनाहों पर।
क्यों नारी नहीं सुरक्षित है ?
यह प्रश्न खड़ा चौराहों पर।।

मर्यादा का खंडन हो जब,
वार करो ना झेलो तुम।
संहार करो महिषासुर का,
रणचंडी बनकर खेलो तुम।।

सुनो निर्भया, सुनो हां श्रद्धा,
अस्तित्व बचाने तन जाओ।
नारी का रूप भयानक हो,
तुम रक्त पिपासु बन जाओ।।

यह कैसी हो गई मानवता,
मदहोश पड़ी अब राहों पर।
क्यों नारी नहीं सुरक्षित है?
यह प्रश्न खड़ा चौराहों पर।।


© अनुराग तिवारी