...

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इंसान
हम इंसान हैं पर इंसानों जैसी कोई बात नहीं है हममें,
बीच सड़क पर एक जान छीन ली किसी ने,
उस जान को बचाने की औकात नहीं है हममें!

हमको बस खुद से मतलब है , दूसरों की चिंता नहीं है,
अपनी खरोंच के तो बहुत मायने हैं, पर दूसरों के घाव कोई गिनता नहीं है,
सिर्फ साँस लेना भर ही जिंदगी की निशानी नहीं,
अगर जज़्बात नहीं दिल में, तो हम जिंदा नहीं हैं!

खुद के परिवार के लिए तो जानवर भी संघर्ष करता है,
उनके दुख में शोक और खुशी में हर्ष करता है,
पर जो दूसरों को भी सहारा दे,
वास्तव में वही इंसानियत की ऊंचाइयों को स्पर्श करता है!

ये मैंने तब लिखी थी जब दिल्ली में साक्षी की हत्या हुई थी। मामला भले ही पुराना हो गया है लेकिन हम इंसानों की सच्चाई आज भी वही है।
© Shivaay