...

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इम्तिहान
जबसे खुली है आंख
कुछ और तो नहीं याद
याद है बस इम्तिहान
हर वक्त हर पल
जाने कितनी कसौटियां
जैसे तारों पर कसे गए
हो हम
जैसे कसे जाते हैं
किसी वाद्ययंत्र के तार
या फिर
किसी चारपाई की निवार
या धनुष की प्रत्यंचा
हम थोड़ा बने
उससे ज्यादा बनाए गए
हमारे कदम
चले लड़खड़ाए
फिर संभले
फिर दौड़े
कितनी पगडंडियां
कितने मोड़
कितने रास्ते
घास फूस कंकर पत्थर
रेत दरिया
और छपाक छपाक
करते करते हम
पार कर आए
फिर भी मिलते रहे
हर मोड पर
बवंडर हर भंवर
पत्थर को मोम करने
की कवायद साथ साथ
मन में कभी डर
कभी हौंसला
देते रहे इम्तिहान
और ये चलेगा
आखिरी दिन तक
जीवन एक परीक्षा ही तो है l


© Shraddha S Sahu