...

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" जिंदगी "
ज़िंदगी...
कैसे कैसे रंग दिखाती हो ,
जिस को माना था सब कुछ,
उस से ही दिल तुड़वाती हो।

ज़िंदगी...
कैसे कैसे रंग दिखाती हो ,
जो ना सुना था कभी,
किसी अपने से ही सुनवाती हो।

ज़िंदगी...
कैसे कैसे रंग दिखाती हो ,
जो ना रोया था कभी,
उस को भी रुला देती हो।


ज़िंदगी...
कैसे कैसे रंग दिखाती हो ,
जो बसाने वाली थी घर अपना,
उसी के हाथो घर उजड़वाती हो।

ज़िंदगी...
कैसे कैसे रंग दिखाती हो ,
जब चाह रहा था तुझे जीना ज्यादा,
तब ही जीने की उम्मीद मीटाती हो।

© Aj's