...

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दिल ही तो है
पहली मोहब्बत सच होकर
क्या हासिल कर लेगा
जब आदमी सही न हो,
वो जिससे हम मोहब्बत करते थे।

पहली मोहब्बत में सब कुछ
सही रह कर क्या होगा
जब आशिकी ही धूमिल हो
तो आशिक कैसे अच्छा होगा।

दुसरी बार की वो मोहब्बत
दिला देती हैं हमे सोहबत
जिसकी आरजू होती हैं हमे
चार चांद लगा जाता हैं ।

ये मोहब्बत सही वक्त पर
सही आशिकी से होती हैं
जिंदगी सही रास्ते पर
लौटती हुई दिखती हैं।

© वसीम आज़म

# स्नेह#निस्पृह#निर्लिप्त @वसीम7171