...

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"विनोदिनी"
मेरे शहर की ही वो अल्हड़
विनोदिनी सी लड़की।

बात बेबात खुलकर हंस देती थी वो
और सहेलियों संग खग बन फिरतीं थी।

कभी बालों में दोनों चोटियां गूंथा करतीं
तो कभी खुलें केश ही छोड़ देती थी वो।

कभी आनान्दित हों मां के आलिंगन लग
जाती तो कभी पिता से अपनी ज़िद मनवाती।

आज कई वर्षों उपरांत उससे मुलाक़ात हुई
मगर पहले की भांति न कोई बात हुई।

कभी हुआ करती थी जो अल्हड़ और मस्त
आज वही बिलकुल शांत और सौम्य हो गई थी।

बात बात पर खिलखिला कर हंसने वाली आज
सहज भाव से मुस्कुरा देती थी,बस।

दो गूंधी चोटियों के बदले जूड़े और मांग में सिंदूर
और कुमकुम ने ले लिया था।

क्या ही कहूं और कैसे बयां करूं, पूर्णतया ही
परिवर्तित हो गई थी मेरे शहर की वो अल्हड़
विनोदिनी सी लड़की।






© Deepa🌿💙