ग़ज़ल 1
ग़ज़ल
लबों पे आके ठहर जाते हैं अफ्साने कई
लगता है के चेहरों को अब पढ़ना पड़ेगा
तय हैं यूँ तो पहले से पैमाने कामयाबी के
मगर इस दौर मे फिर से इन्हें गढ़ना पड़ेगा
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लबों पे आके ठहर जाते हैं अफ्साने कई
लगता है के चेहरों को अब पढ़ना पड़ेगा
तय हैं यूँ तो पहले से पैमाने कामयाबी के
मगर इस दौर मे फिर से इन्हें गढ़ना पड़ेगा
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